सरयू दीदी
मैंने फोन मिलाया। गोपाल जोशी सुनाकर सदके में आ गए, 'यह नहीं हो सकता। मैं अभी पता लगाता हूँ।' उन्होंने फोन रख दिया।
'क्या
करूं मनु?' दीदी की आवाज में बेबसी थी। वही तो सदा समझदार रहीं। वही तो हर
प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का हल ढूंढ़ लेती थीं। पर यहां वह
किंकर्त्तव्यविमूढ़-सी थीं । वह उठकर कमरे में टहलने लगीं । 'अभी तो जीवन
शुरू ही हुआ था मनु।' दीदी ने हाथ जोड़े ऊपर देखा, आंखें बंद कीं और जोर से
बोली, 'हे ईश्वर आप ही माता है आप ही पिता हैं। हे ईश्वर आप ही सबकी रक्षा
करने वाले हैं। हे ईश्वर मुझे ठीक सोचने-समझने की शक्ति दीजिए। मुझे बल
दीजिए। हे ईश्वर मुझे बल दीजिए।' दो क्षण बाद दीदी की आंखें झरने लगीं।
थोडी देर बाद दीदी में शक्ति लौटकर आ गई, 'मनु मैं यब कुछ सह लूंगी। भगवान
महान हैं, दयालु हैं।' मेरी तरफ़ मुड़कर बोलीं, 'मनु। पापा से पूछो अजीत को
लेकर प्लेन कब आ रहा है?' वह उठकर दराज़ में से कूछ खोजने लगीं।
तभी
फोन की घंटी बजी मैंने फ़ोन उठा लिया। उधर फोन पर मां थी, 'मनु अजीत को
यहां अपने घर ले आते हैं। वही ठीक होगा। वहीं सरयूजी क्या करेंगी? '
मैं दीदी से पूछती हूँ। हिम्मत करके मैंने दीदी से पूछा। दीदी ने कहा, 'मनु! अजीत का घर यहीं है, वह यहीं आयेंगे ।'
मैंने जाकर मां को बता दिया।
-(इसी उपन्यास से)